Tuesday, June 21, 2011

Translated poems (Chaitanya)

चैतन्य
श्चिम की ओर दृष्टिगोचर
मरीन डॉइव  पर
खुले हुए हस्त समर्थित करते हुए
बृहत लबादे को-तुम वहीँ खड़े हो हे चैतन्य
क्षितिज पर दृष्टि रखे हुए
अविचलित
प्रतीक्षित
भविष्यवाणी करते हुए एक नवीनतम घटना के आगमन की 
यहाँ घुमावदार नदियों के तट नहीं 
न ही अस्थिर बंगाल के बाघ 
न ही है यहाँ वर्षा का जल है जो तुम्हारे पाँव पखार सके
मात्र श्वेत हिम है, अतिशीत करने के लिए तुम्हारे प्राणों को

कालिमा में वर्षा की बूंदे
अनुकरण  करतीं जुगनुओं का
पूर्ण करतीं रिक्तता को
प्रदर्शित करते हुए एक पाषाण ह्रदय 
धडकनों से वर्जित
क्या तुम देख सकते हो चैतन्य 
अपने मार्ग की दुर्गमता को
मुझे लगता है तुम जानते हो
विशाल 
जो में व्यक्त कर रहा हूँ

क पाषाण धर्मादेश
एक नवीन नास्तिकता
अपारदर्शी पर स्पष्ट
साधारण पर जटिल
उथला पर गहरा, लेन-देन
हल्का या गाड़ा, दुःख या प्रसन्नता
मतभेद या उड़ान
एक मात्र कोशिका
से लेकर पृथ्वी के ढेर तक
है जीवन यात्रा

हे चैतन्य उठो
तुम्हारी पाषाण मुस्कराहट असमंजित है
अनुपयुक्त   
-अशोक भार्गव की अंग्रेजी कविता 'चैतन्य' से अनुवादित 

   
 
 
 
 
  

  
 
 

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