Wednesday, June 22, 2011

Translated (Clay Prophet)

मिट्टी का पैगम्बर 

एक बार मैंने सौंदा उत्तम मृदा को सुगन्धित सौम्य देह में
मैंने उसके कर्ण, नाक, अधर और कपोल बनाये
बनाया उसे एक रमणीय खिलौना
मैंने उसे चमकीला ललाट और केश दिए
उसे अपनी धमनियां और रक्त दिया 
सामर्थ्य दिया अपने अंगों का
और हृदय भी 
मैंने उसे अपने नेत्र दिए 
उसके फेफणों को अपनी श्वांसों से भरा 
उसपर अर्पण किया सर्वस्व, प्राण भी
जब भी वह बोला, हंसा, चला 
बना वह मेरा रक्षक, पैगम्बर, गुरु और मसीहा 
क्रमशः लोगों ने उसे देखा 
पसंद किया, प्रेम किया उससे और अर्चना की उसकी
इस प्रकार वह अंतर्लीन हो गया उनके प्रेम में 
मुझे किया निर्जन
एवं निराश

कई वर्षों पश्चात् पुनः लौटा वह 
और आग्रह किया बनने का इश्वर मेरा 
मैंने उससे कहा 
अब वह मेरा रक्षक नहीं
जब वह था, ईशु, कृष्ण और मोहम्मद कहलाता था
वह चमत्कार करता था और नेत्रहीनों को देख पाने का सामर्थ्य देता था 
पर्वत उठा लेता था वह अपनी कनिष्ठिका पर
और छत्र की तरह प्रयोग कर वर्षा के प्रकोप से 
लोगों का कवच बनाता था 

जब वह मेरा पैगम्बर था 
हरक्युलिस से प्रभावशाली था 
और उसका मुख लाखों सूर्यों, चंद्रों और नक्षत्रों की भांति प्रकाश्पुन्जित था 
उस समय मात्र उसका नाम पर्याप्त था 
मेरे दुखों को अवांछित करने के लिए 
मैंने उससे कहां
जब वह मेरा फ़रिश्ता था 
उसके चरणों के मात्र स्पर्श ने
परिवर्तित कर दिया था, विशाल गंगा के जल को अमृत में
जिससे अतृप्त आत्मा मेरी जीवंत हो उठती 
मैंने कहा उससे
हाँ, उस समय में इच्छित था उसके साथ का
 नैकट्य का
पर अब मुझे आवश्यकता नहीं
क्यूंकि में परिचित हो चूका हूँ 
अपने यथार्थ से
सत्य से
और अहम से 
-अशोक भार्गव की अंग्रेजी कविता 'क्ले प्रोफेट' से अनुवादित

 

No comments:

Post a Comment