Thursday, June 30, 2011

Ghazal

ग़ज़ल
कल गुज़रते हुए दयारों से,
देखी एक तस्वीर दीवारों पे
गुज़र गया एक आदमी खबर न मिली अख़बारों से
सुना है हँसी न मिल पाई थी उसे
हसी मेहेंगी  हो चुकी थी बाजारों में
फूल बिखरे थे मजारो में उसकी याद के
पत्ता पत्ता उड़  चला था नजारों में
आँखों में तैरती थी तरल से रेखा
याद अभी भी बाकी थी उसकी यारों में
असलियत से जब वो मिला था
रुसवा कर दिया था उसके प्यारों ने
रूठ गया था वो दुनिया से
मिल गया था वक़्त के मारों में|
-विजया

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