Tuesday, June 28, 2011

प्रतीक 

अपराह का सूर्य 
एक अग्नि पिंड स्पर्श करता
क्षितिज को
गिरिजा के भीतर गायी जा रहीं स्तुतियाँ 
पूर्ति करती वायु का सूक्तियों से 
पथ खोजतीं घर का

एक बाड़ा विभाजित करता 
पादरी के मंच से श्रोताओं को
जो की ज्ञानमय हैं 
बदलते हुए प्रकाश से
जो निथर कर आ रहा है 
धब्बेदार कांच से

सृजन करती गिरती हुई ईशु की प्रतिमा का
क्रूश से गिरी और बड़े में अटकी हुई

जागृत करो देवों को 
पोछो मवाद
बनाओ स्थान निराश्रय, निर्धन 
एवं अन्य लोकिक विदेशियों के लिए
क्यूंकि यह एक प्रतीक है
-अशोक भार्गव की अंग्रेजी कविता ' ए साइन' से अनुवादित

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