Tuesday, July 26, 2011

For us who do not care

बेपरवाह 
मैं बदमाश हूँ
ढूंढो मुझे झुग्गियों में पयाटास की
या फिर लोकल ट्रेन के भीतर 

दफना दो मुझे चीथड़ों में
या फिर कागज के कम्बलों में रात को
जब में स्वप्न देखता हूँ एक घर का
अपना कहने के लिए

तैरता हूँ मैं दूषित नदियों में
मनुष्यों के द्वारा गन्दी की गयी
जिनकी आत्माएं पासिंग नदी से भी काली हो गयी हैं
चलता हूँ मैं मनीला की गलियो की 
 सघन हवा में
धुआं डकारती गाड़ियों से

चट्टानों सी ऊंची 
इकठ्ठा करता हूँ गन्दगी
शहर की
शहर जो औजीयां  अस्तबलों से भी गन्दा है
बारिश के दिनों में
दिन की रौशनी में यूँ ही चलते हुए 
मालों में
देखता हूँ गनिकाएं व्यापार करती देह का
चंद पैसों के लिए

आह!
यह क्या भविष्य देखता हूँ मैं
-संतिअगो विल्लाफनिया की कविता ' फॉर अस हु ड़ू नोट केयर' से अनुवादित
 

No comments:

Post a Comment