Tuesday, July 26, 2011

For us who do not care

बेपरवाह 
मैं बदमाश हूँ
ढूंढो मुझे झुग्गियों में पयाटास की
या फिर लोकल ट्रेन के भीतर 

दफना दो मुझे चीथड़ों में
या फिर कागज के कम्बलों में रात को
जब में स्वप्न देखता हूँ एक घर का
अपना कहने के लिए

तैरता हूँ मैं दूषित नदियों में
मनुष्यों के द्वारा गन्दी की गयी
जिनकी आत्माएं पासिंग नदी से भी काली हो गयी हैं
चलता हूँ मैं मनीला की गलियो की 
 सघन हवा में
धुआं डकारती गाड़ियों से

चट्टानों सी ऊंची 
इकठ्ठा करता हूँ गन्दगी
शहर की
शहर जो औजीयां  अस्तबलों से भी गन्दा है
बारिश के दिनों में
दिन की रौशनी में यूँ ही चलते हुए 
मालों में
देखता हूँ गनिकाएं व्यापार करती देह का
चंद पैसों के लिए

आह!
यह क्या भविष्य देखता हूँ मैं
-संतिअगो विल्लाफनिया की कविता ' फॉर अस हु ड़ू नोट केयर' से अनुवादित
 

Saturday, July 16, 2011

VIJAYA: ग़ज़ल कल गुज़रते हुए दयारों से, देखी एक तस्वीर दीव...

VIJAYA: ग़ज़ल कल गुज़रते हुए दयारों से,
देखी एक तस्वीर दीव...
: "ग़ज़ल कल गुज़रते हुए दयारों से, देखी एक तस्वीर दीवारों पे गुज़र गया एक आदमी खबर न मिली अख़बारों से सुना है हँसी न मिल पाई थी उसे हसी मेह..."

VIJAYA: Inheritance of Loss or Gain.

VIJAYA: Inheritance of Loss or Gain.: "The virtues of a proper composite education as well as proper parenting of children in the right manner cannot be emphasized enough if we w..."

VIJAYA: प्रतीक  अपराह का सूर्य एक अग्नि पिंड स्पर्श करताक्...

VIJAYA: प्रतीक
अपराह का सूर्य एक अग्नि पिंड स्पर्श करताक्...
: "प्रतीक अपराह का सूर्य एक अग्नि पिंड स्पर्श करता क्षितिज को गिरिजा के भीतर गायी जा रहीं स्तुतियाँ पूर्ति करती वायु का सूक्तियों से पथ खो..."

VIJAYA: Ghazal

VIJAYA: Ghazal: "ग़ज़ल कल गुज़रते हुए दयारों से, देखी एक तस्वीर दीवारों पे गुज़र गया एक आदमी खबर न मिली अख़बारों से सुना है हँसी न मिल पाई थी उसे हसी मेह..."

Monday, July 4, 2011

Jammu


Jammu

Jammu,
Wooden shops,
Cobbled ways

Jammu,
Green ancestral alibis canopy concrete roads
Nodding to the whistles of winds

Jammu,
Embroided with green
Tanks and men
Men in green, agile, expressionless like mannequin
Transformed into robots
Vomiting bullets at someone who used to be a brother

Jammu,
Pink-faced, kissed by cold
With deep emerald eyes
Reflecting bottoms of their old waters

Jammu
Serpentine roads
Hospitable cabbies, who are
Google of the place
And no need to feed a word too
Because they read you
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-Vijaya Kandpal

Friday, July 1, 2011

चाँद
यह रात और मेरे साथ चलता चाँद,
भागती हुई ज़िन्दगी के साथ भागता चाँद,
चमकते रास्तों से दूर फिर भी दिलों में पिघलता चाँद,
जाहिल रात की काली सलेट पे ज़हीन सा सिफ़र चाँद,
सयानों की दुनिया में दीवाना बनाता चाँद,
खूबसूरत को बदसूरत और बदसूरती को खूबसूरत करता चाँद,
उम्र के साथ बदलता चाँद,
मेरी आँखों से तेरी आँखों तक पहुँचता चाँद,
यादों को गाढ़ा और फासलों को महीन करता चाँद,
नींद में दफ़न रात को कफ़न करता चाँद|

-विजया